गाजरघास न केवल फसलों बल्कि मनुष्य और पशुओं के लिए भी एक गंभीर समस्या है, गाजर घास नियंत्रण हेतु खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर प्रति वर्षानुसार आगामी 16 अगस्त से 22 अगस्त 2021 तक गाजरघास जागरूकता सप्ताह राष्ट्रीय स्तर पर अपने 24 केंद्रों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के समस्त संस्थानो, विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों, स्कूल, कॉलेजो तथा समाजसेवी संस्थाओं के माध्यम से मनाने जा रहा है। कार्यक्रम का शुभारंभ 16 अगस्त को आयोजित वेविनार विषय ‘‘गाजरघास खरपतवार की समस्या और विष्व स्तर पर इसका प्रबंधन’’ पर किया जा रहा है, कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डॉ.स्टीव डब्लू एडकींस ऑस्ट्रेलिया तथा मुख्य अतिथि डॉ.एस.के.चौधरी उप महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली, विशेष अतिथि डॉ.एस.भास्कर सहायक महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली उपस्थित रहेंगे। कार्यक्रम के आयोजन में डॉ.ए.के.पांडे कुलपति, विक्रम वि.वि.उज्जैन, डॉ. जे.एस. मिश्र निदेशक खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर, डॉ.सुशील कुमार अध्यक्ष, इंडियन सोसायटी ऑफ वीड साइंस की सहभागिता होगी तथा दिनांक.18 अगस्त को विभिन्न हितग्राहीयों हेतु ऑन लाइन प्रशिक्षण विषय ‘‘गाजरघास का प्रबंधन’’ पर किया जा रहा है। खरपतवार अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डॉ. जे.एस. मिश्र ने बताया कि गाजरघास (पार्थेनियम) न केवल फसलों, बल्कि मनुष्यों और पशुओं के लिए भी एक गंभीर समस्या है।
गाजरघास पूरे वर्ष भर उगाता एवं फलता फूलता रहता है। बहुतायत रूप से गाजरघास के पौधे खाली स्थानों, अनुपयोगी भूमियों, औद्योगिक क्षेत्रों, सड़क के किनारों, रेलवे लाइनों आदि पर पाए जाते हैं। इनके अलावा इसका प्रकोप धान, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, मटर, तिल, अरंडी, गन्ना, बाजरा, मूंगफली सब्जियों एवं उद्यान फसलों में भी देखा गया है। गाजरघास के तेजी से फैलने के कारण अन्य उपयोगी वनस्पतियों, स्थानीय जैव विविधता एवं पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। डॉ मिश्र ने बताया कि इस खरपतवार के लगातार संपर्क में आने से मनुष्यों में डर्मेटाइटिस, एग्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि जैसी बीमारियां हो जाती हैं। इसके खाने से पशुओं में अनेक प्रकार के रोग पैदा हो जाते हैं एवं दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट आने लगती है। गाजरघास के उन्मूलन हेतु हाथ से उखाड़ने तथा अन्य यांत्रिक विधियों में काफी व्यय करना पड़ता है तथा साथ ही साथ खरपतवार के पुनरावृति की संभावना भी रहती है, हाथ से छूने पर मनुष्यों में दमा, खुजली आदि बीमारियों से ग्रस्त होने की संभावना और बढ़ जाती है। देश के विभिन्न भागों में किए गए अनुसंधान कार्यों से पता चलता है कि शाकनाषी के प्रयोग से इस खरपतवार पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है। इन शाकनाषी रासायनों में एट्राजिन, डाययूरान, मेट्रीव्यूजिन, 2,4-डी, ग्लाइफोसेट, प्रमुख है। कृषित तथा अकृषित क्षेत्रों में गाजरघास के उन्मूलन हेतु कौन से खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग कब और कैसे करना चाहिए, इसकी जानकारी खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर से प्राप्त कर सकते हैं।
डॉ मिश्र ने बताया कि जैविक नियंत्रण विधि से खरपतवारों का नियंत्रण, उनके प्राकृतिक, मुख्यतः कीटों, रोग के जीवाणु एवं वनस्पतियों द्वारा किया जाता है। जैविक विधि द्वारा इस खरपतवार के नियंत्रण का प्रयास हमारे निदेशालय द्वारा युद्धस्तर पर किया जा रहा है। गाजरघास के विरुद्ध मेक्सिको से एक भृंग जाति के कीट ‘‘जाइगोग्रामा, बाइक्लोलाटा’’ को आयात किया गया है, जो कि अब भारतीय परिस्थितियों में अच्छी तरह से स्थपित हो गया है। यह कीट गाजरघास की पत्तियों को पूरी तरह से खाकर पौधों को पत्ती रहित कर देता है तथा अंत में पौधे सूख जाते हैं। इस कीट ने देश के कई प्रदेशों तथा क्षेत्रों में गाजर घास के प्रकोप को कम करने में अपार सफलता और ख्याति प्राप्त की है। हमारा निदेषालय इस कीट के प्रचार और प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। निदेशालय द्वारा अब तक लगभग 20 लाख मैक्सिकन बीटल देश के विभिन्न प्रदेशों में निःशुल्क को छोड़े जा चुके है। इस कीट की कुछ मात्रा को अगस्त व सितंबर माह में हमारे निदेशालय से निःशुल्क प्राप्त किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में भी इस कीट ने सफलतापूर्वक कार्य किया। डॉ मिश्र ने बताया कि गाजरघास जागरूकता सप्ताह का शुभारंभ दिनांक 16 अगस्त 2021 को निदेशालय एवं अपने 24 केंद्रों, विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों तथा समाजसेवी संस्थाओं के माध्यम से किया जा रहा है। पत्रकार वार्ता में निदेषालय के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पी.के. सिंह, डॉ. सुशील कुमार, एवं श्री बसंत मिश्रा जनसम्पर्क अधिकारी प्रमुख रूप से उपस्थित थे।