खरपतवार अनुसंधान निदेशालय द्वारा देशव्यापी गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि अनुसंधान परिषद् के समस्त संस्थानों, कृषि विज्ञान केन्द्रों (के.वी.के.) राज्यों के कृषि विभागों एवं अखिल भारतीय खरपतवार प्रबंधन के केन्द्रों, स्कूल, कॉलेजो तथा समाजसेवी संस्थाओं को शामिल कर देशव्यापी कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। इस अवसर के लिये विशेष रूप से विकसित पोस्टर और प्रसार सामग्री संपूर्ण देश के हितधारकों को वितरित की जा रही है। राष्ट्रीय वेविनार द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम देशभर के करीब 800 वैज्ञानिकों/छात्रों एवं विश्व विद्यालयों, संस्थानों ने भाग लिया। क्रार्यक्रम के मुख्य अतिथि खरपतवार अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डॉ. जे.एस. मिश्र ने कहा कि गाजरघास अनेकों रोगों आंखों त्वचा की एलर्जी, बुखार, जानवरों और मनुष्यों में श्वांस संबंधी समस्यायें पैदा करने का कारण है। इसके अलावा यह कृषि उत्पादकता को भी कम कर देती है। गाजरघास की समस्या का समाधान जागरूकता एवं प्रषिक्षणों के माध्यम से ही किया जा सकता है।
डॉ. मिश्र, ने बताया कि गाजरघास एक गाजर जैसा दिखने वाला खरपतवार है जिसका वैज्ञानिक नाम पार्थेनियम हिस्टोफोरस है । गाजरघास को अन्य नामों जैसे - कांग्रेस घास, सफेद टोपी, छंतक चांदनी या चटक चांदनी, गंधी बूटी आदि नामों से भी जाना जाता है, यूं तो और भी बहुत से खरपतवार हैं जो किसानो एवं फसलों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं पर गाजरघास फसलां में नुकसान पहुंचाने के अलावा मनुष्यों और जानवरो के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाता है। इसकी उपस्थिति के कारण स्थानीय वनस्पतियां नहीं ऊग पाती जिससे स्थानीय जैव विविधता पर प्रभाव पड़ता है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। गाजरघास से ग्रसित जगहों में रहने वाले लोगों में त्वचा एवं श्वांस संबंधी रोगों में आष्चर्यजनक रूप से वृद्धि का कारण भी यही खरपतवार है। जानवरों में भी यह खरपतवार कई रोग फैला देता है। प्रशिक्षण कार्यक्रम मे भाग ले रहे प्रगतिशील कृषकों एवं अन्य प्रतिभागियो से जनभागीदारी द्वारा गाजरघास मुक्त करने का आह्वान किया।
कर्यक्रम संयोजक डॉ. सुशील कुमार ने गाजरघास से होने वाले प्रभावों और इसके नियंत्रण के उपायों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। गाजरघास को खाने वाले कीट के बारे में बताया कि यह कीट जबलपुर के आसपास के क्षेत्रों में अच्छा काम कर रहा है। गाजरघास से कम्पोस्ट बनाने की विधि को बताया तथा इसे अपना कर कृषक अपनी आय बढा सकते हैं।