खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर द्वारा दिनांक 19 जनवरी 2022 को एक दिवसीय राजभाषा पर बौद्धिक परिचर्चा एवं प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया, दो सत्रों में आयोजित प्रशिक्षण के प्रथम सत्र के वक्ता प्रो. अरुण कुमार, पूर्व प्रचार्य, गोविन्दराम सेकसरिया महाविद्यालय, जबलपुर ने “आज के परिदृष्य में राजभाषा” का महत्व विषय पर एवं द्वितीय सत्र के वक्ता श्री घनश्याम नामदेव, सहायक निदेशक, हिन्दी प्रशिक्षण योजना, जबलपुर केंद्र ने कम्प्यूटर में यूनिकोड का प्रयोग एवं अन्य तकनीकी जानकारी विषय पर नगर के समस्त केन्द्रीय संस्थानों के प्रतिनिधियों से संवाद किया । प्रशिक्षण कार्यशाला का उद्घाटन निदेशालय के निदेशक डॉ.जे.एस.मिश्र, मुख्य अतिथि प्रो. अरुण कुमार, श्री राज रंजन श्रीवास्तव, सचिव नराकास, डॉ.पी.के.सिंह एवं श्री बसंत मिश्रा ने दीप प्रज्जलन एवं मॉ सरस्वति को माल्यार्पण कर किया। श्री बसंत मिश्रा प्रभारी राजभाषा द्वारा संस्थान की उपलब्धियों और राजभाषा के प्रचार प्रसार हेतु किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी साथ ही कहा कि जर्मनी में 11 विश्व विद्यालयों में हिन्दी पढाई जा रही है। 41% लोगों में भाषा रोज बदल रही एवं भाषा का आधुनीकरण व माननीकरण भी जरूरी है। भाषा की पहली पहचान है कि वह प्रचलित हो, भाषा हमारी जैविक अन्वृत्ति है।
मुख्य अतिथि प्रो.अरुण कुमार ने कहा कि निदेशालय द्वारा जिस उद्धेष्य से इस कार्यशाला का आयोजन किया गया है उसे निष्चित ही वह प्राप्त करेंगा। वास्तव में कोई भी भाषा संग-साथ में बोली जाने वाली जनसामान्य की भाषा ही राजभाषा है। संसार का कोई भी देश अपनी भाषा की अवहेलना करके प्रगति नही कर सकता । भाषा में अद्भुत शक्ति होती है यह हमें एक दूसरे से जोड़ती है। प्रो.अरुण कुमार ने भाषा की स्थिति के संबंध में बताया कि इसमें विविधता की जगह एकरूपता लाने की जरूरत है। पाली, प्राकृत, हिंदी आदि लगभग 7000 भाषाएं है। भाषा बाहरी आवरण नहीं है अंतर मन इच्छा से से चाही जाने वाली भाषा है। जिससे भाषा की शक्ति का विकास होता है भाषा कोई चिन्ह नहीं है भाषा प्रतीक व प्रतीत है जो यह बोध कराती है कि भाषा एक अहसास है। निदेशालय के निदेशक डॉ.जे.एस.मिश्र द्वारा नराकास के विभिन्न केंद्रीय कार्यलयों से पधारे सदस्य गण, मुख्य अतिथि एवं सभी सम्मानीय गणों का स्वागत कर पधारने के लिए हर्ष व्यक्त किया। संस्थान में किए जा रहे अनुसंधानों एवं प्रयासो की जानकरी दीं। साथ ही कहा कि कोई भी बोली अपने सुनिष्चित क्षेत्र को छोड़कर किसी भी कारणवश सभी जगह बोली जाने लगे तो वह सम्पर्क भाषा होती है। अपनी भवानाओं और विचारो की अभिव्यक्ति के लिए भाषा का होना आवष्यक है, इसके लिए हिन्दी हमेशा प्रथम पंक्ति में पाई जाती है। यदि भाषा की शक्ति का विस्तार करना है तो दूसरी भाषाओ को जानना, बहुभाषी होना बहुत आवश्यक है। राजभाषा नीति अनुसार हमे हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहन के रूप में बढ़ाना है।
समापन समारोह श्री बसंत कुमार शर्मा उप मुख्य सतर्कता अधिकारी, पमरे, जबलपुर के मुख्य आतिथ्य में आयोजित कि गया। श्री बसंत कुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी साहित्य व राजभाषा अलग है इसे हमेशा सरल, सहज व सर्वग्राही होना चाहिए। भारत एक संघ राज्य है जहाँ भाषा विभिन्न बोलियो को पहचान के रूप मे एकत्रित करने की जरूरत है। भाषा किसी पर लादी ना जाये। संपूर्ण देश में सभी जगह राजभाषा हिन्दी की महत्वपूर्ण भूमिका है और यह भावात्मक रूप से जोडे़ रखती है क्योंकि हिन्दी दिल की भाषा है । कार्यशाला में लगभग 80 प्रतिभगियों ने भाग लिया जिसमें 30 से ज्यादा केन्द्रीय संस्थानों के प्रतिनिधियों के साथ ही निदेशालय के अधिकारियों, कर्मचारियों उपस्थित रहे। मुख्य अतिथियो का स्वागत डॉ.जे.एस.मिश्र व डॉ.पी.के.सिंह द्वारा किया गया। मंच संचालन बसंत मिश्रा प्रभारी राजभाषा एवं आभार डॉ.पी.के.सिंह द्वारा किया ।